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घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ कोरे हैं…

चंन्द्रशेखर तिवारी अज़ाद
चंन्द्रशेखर तिवारी अज़ाद
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मेरे लेख पढ़ नराज़ होगी इरादे इसका एहसास है

पर फिर भी लिख रहा हुं अपना समझ पढ़ लेना

तुम्हे क्या बताउ दोस्त

घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ कोरे हैं।


मैं परेशान हैरान तकता रहा घटों

एक कागज़ पर लिखने की कोशीश में

पर तुम्हे क्या बताउ दोस्त

घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ कोरे हैं।


दिल के उभरे लब्ज स्याही तक क्यों नहीं पहोचते

इसका ज़वाब न दे पाउगां, हार मान समय कि सिमा भुल

लिखता गया परिंदा बन पर तुम्हे क्या बताउ दोस्त

घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ कोरे हैं।


किस बात की बेचैनी है कैसी यह तनहाई

मेरी देशभक्ती भी जवाब न दे पाई मेरे इल्म का

तो लिखने बैठा था लाखों शब्द लिए पर तुम्हे क्या बताउ दोस्त

घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ कोरे हैं।


बड़े हौसले से बैठा राजनीति पे लिखने

तो घंटों लिखता गया वेखौफ हो भारत माता का सुपुत बन,

पन्ने पर नज़र पड़ी तो क्या बताउ दोस्त शब्द नहीं कहने को

मेरे कागज़ अब भी कोरे हैं।


सोचा लिख दुं तनहाई पर तो इश्क ने गुदगुदाया,

जब सोचा लिखुंगा देश कि हालत पर चठतंत्र याद आया

अब क्या बताउ इस बार भी नाकाम रहा घंटों लिखने पर

यही बता पा रहा हुं दोस्त मेरे कागज़ अब भी कोरे हैं।


कई बार नकाम हुआ ढुंढ लाता हुं मुद्दा गहराई के गड्ढे खोद

पर न जाने लिखते ही क्यों मलिन हो जाता हुं खुद कलम के स्याही में

अब भी क्या बताउ दोस्त घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ अब तक कोरे हैं।

घंटों लिखने पर भी मेरे कागज़ अब तक कोरे हैं।

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