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मैं दर्द में हुं दर बदर भटकता इंसांन हर पल मन में सोच लिए कि काश मैं यह कर पाता, काश मैं वह कर पाता।
घने बादल तले चलता हुं जब भीगें रास्तो पर तब मेरी सोच ताड़पाती है कि काश मैं यह कर पाता की कोई नन्हा ख़ुदा भीगे आसमान तले न सोता।
पैरों में किमती जुते पहने रैगंता हुं जब दर बदर तब हाथ फैलाये नन्हे खुदा को देख बिलकता है मेरा मन कि काश मैं यह कर पाता कि मेरा खुदा नंगा पैर न होता।
जेबों में हजारों के मैल लिए भटकता हुं बजारों में तो ख़ुद की आवाज से झन्नाता हुं कि काश मैं यह कर पाता तो कोई बृद्ध मेरे नैनों तले हाथ न फैला पाता।
किताबों की जद्दो जहद में डुबा रहता हुं इस कदर तो मेरे ग्यान मुझे फटकारते हैं कि काश मैं यह कर पाता तो दुकानों पर जुठा धो रहा मेरा नन्हा खुदा अशिक्षित न होता।
निवालों में साही भोजन चबाता हुं जिस घढी अपने ही लब्ज धितकारते हैं मुझे कि काश मैं यह कर पाता तो मेरा खुदा नंगे किडों की भाती रास्ते पर दम तोड़ अलविदा न कह पाता।
मैं परेशान हुं खुदा को ढुढता नादान परीन्दा बने मंदिर मश्जिदों में की किसे मानु खुदा पत्थर के मुर्ती को या सडकों पर हाथ फैलाये नन्हे बच्चों को जिनका खुदा न होता तो वो न होता।
मैं दर्द में हुं दर बदर भटकता इसांन हर पल मन में सोच लिए कि काश मैं यह कर पाता, काश मैं वह कर पाता।
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