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मैं रिश्ता हुं हर पल हर दिन् बनता हुं। हर पल हर दिन् बिगड्ता हुं। कभी राह चलते लोग मुझे जन्म देते हैं मानवता के हक़ में। तो कहीं गुमनाम गलीयों में गला घोट मौत के घाट उतारा जाता हुं। कभी मेरे जीवन के प्रारभं में सवाल उठते हैं। तो कभी कोई मुझे खत्म कर भी मेरे दामन पर दाग लगाना नही भुलता।
मैं तब भी शक़ के दायरो में था जब मुझे बिभीषण ने शत्य के राह चल भाई का पहचान देकर धर्म के नाते मुझे दाव पर लगाया था। मैं तब भी दाग दार हुआ था जब कौरवों ने द्रोपदी का चीर हरण कर देवर भाभी के धर्म की लज्जा से मुझे लाज़ में डुबोया था।
मेैं तब भी बदनाम हुआ था जब मानवता का नाम देकर वैहसी दरीदों ने मेरे देश की मलाला के जीवन को दिल्ली के बीच सड़क तार तार किया था। मैं तब बहोत डरा था उस युग में खूद को गुनाहगारों से बचाने में। मैं आज भी डरता हुं इसांनियत को मरता देख़।
मैं शर्मशार होता हुं जब दुनीया के मेले में मुझे कोई पिता का नाम देकर अपनी बेटी से दुष्कर्म कर मुझे सरेआम बदनाम करता है। मेरा सर शर्म से झुक जाता है जब कोई मुझे बेटा का नाम देकर अपने मां की हत्या करता है।
मैं लज्जित होता हुं खुदा के नज़रों में जब मुझे दोस्त का नाम देकर कोई अपने दोस्त से विश्वास घात करता है। मैं शर्मिदां होता हुं अपने ही ज़ुबान में जब कोई मुझे भाई का नाम देकर अपने बहन से दुशकर्म कर अपने हवस की भुख मिटाता है।
मैं परेशान हुं हंसु ख़ुदा के ख़ुदाई पर या रो पडुं ख़ुद के जग हसाई पर। पर खुदा अंजान नही मेरे सच से मैने कभी बुराई नही चाही इसांनों में क्योंकि मैंने कभी असरा नही लिया हैवानों में।
आज लाख़ दागों के तले दर्द में थामा है मैने खुद को। जीस दिन मैं न हुंगा ना तुम होगे दुनीया में ना तुम्हारी ख़ुदाई। बचा लो मुझे मरने से अब डर लगता है। पहचानों मुझे मैं रिश्ता हुं हर पल हर दिन् बनता हुं। हर पल हर दिन् बिगडने से बचा लो मुझे। हर पल हर दिन् बिगडने से बचा लो मुझे।।
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