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मन कि व्यथा – चलो आज पत्रकार बन जायें…

चंन्द्रशेखर तिवारी अज़ाद
चंन्द्रशेखर तिवारी अज़ाद
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Borrowed from Internet
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घुम रहा गलियों में बेघर मन में खयाल सा आया चलों आज पत्रकार बन जायें।

न चखने की ललक हो मन में न स्कौच की महेक चलो आज पत्रकार बन जायें।

खोज लायें मुद्दा जीवन के सच का, जन के मन का चलो आज पत्रकार बन जायें। 
चलो आज पत्रकार बन जायें, चलो आज पत्रकार बन जायें।

न साहुकारों का ड़र हो हलक में, न बिकने की चहक हो मन में, चलो आज पत्रकार बन जायें।

न कंपतें हुए हाथ हों कलम पे, न बहकते हुए साथ हो चमन पे, चलो आज पत्रकार बन जायें।

न सत्ता की सड़क हो थल पे, न नपाक बोझ हो चलन पे, चलो आज पत्रकार बन जायें।

चलो आज पत्रकार बन जायें, चलो आज पत्रकार बन जायें।

चटपटा झड़प को छोड़ चलो आज किसी के हित में खबर बनायें, चलों आज पत्रकार बन जायें।

न समझ नौकरी पत्रकारीता को आपना हर कर्तव्य निभायें, चलो आज पत्रकार बन जायें।

बेराज़गार ही सही पत्रकारीता तो कर पायें, मन का कह सुन तो पायें, चलो आज पत्रकार बन जायें।

चलो आज पत्रकार बन जायें, चलो आज पत्रकार बन जायें।

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